पुरानी गाड़ियों पर नकेल: क्या बैन से वाकई घटेगा दिल्ली का प्रदूषण?
दिल्ली—जिसका नाम ही राष्ट्रीय राजधानी है, वह आज प्रदूषण की वजह से दुनिया की खराब वायु गुणवत्ता वाली महानगरों में शुमार है। ठंड की शुरुआत होते ही अचानक हवा स्तब्ध होती है, धुंध छा जाती है और मास्क आम जिंदगी की ज़रूरत बन जाता है। ऐसे में नया प्रस्ताव आया है: 10 साल से पुरानी डीज़ल गाड़ियाँ और 15 साल से पुरानी पेट्रोल गाड़ियाँ अब दिल्ली में पेट्रोल या डीज़ल नहीं ले सकेंगी—यानि इन्हें “स्थायी प्रतिबंधित” कर दिया जायेगा। सवाल उठता है—क्या यही उपाय हमारी हवा को वाकई “स्वच्छ” बना सकता है?
क्या है सरकार का फैसला?
दिल्ली सरकार और राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) के निर्देशों के अनुसार:
- 15 साल से ज्यादा पुरानी पेट्रोल गाड़ियां और
- 10 साल से ज्यादा पुरानी डीज़ल गाड़ियां
को दिल्ली की सड़कों से हटाया जाएगा।
ये निर्देश केवल निजी गाड़ियों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि व्यवसायिक और सरकारी वाहनों पर भी लागू होते हैं।
क्यों निशाने पर हैं पुरानी गाड़ियां?
पुरानी गाड़ियां वातावरण में ज़्यादा कार्बन मोनोऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड और हानिकारक पार्टिकुलेट मैटर (PM 2.5 और PM 10) छोड़ती हैं।
इन गैसों और कणों की अधिकता ही दिल्ली में सांस की बीमारियों और स्मॉग जैसी स्थितियों की बड़ी वजह बनती है।
इसके अलावा, पुरानी गाड़ियों में आधुनिक एमिशन कंट्रोल तकनीक नहीं होती, जिससे इनसे निकलने वाले धुएं पर काबू पाना मुश्किल होता है।
क्या इससे सच में फायदा होगा?
हाँ भी और नहीं भी।
दिल्ली में प्रदूषण के कई स्रोत हैं:
- वाहन: करीब 38% योगदान
- निर्माण कार्य और धूल: 30% से ज़्यादा
- औद्योगिक इकाइयां
- पराली जलाना (सर्दियों में)
- घरेलू ईंधन जलाना
पुरानी गाड़ियों पर बैन लगाने से वाहन प्रदूषण में ज़रूर कमी आएगी, लेकिन जब तक बाकी स्रोतों पर एकसाथ सख्ती नहीं की जाती, तब तक समग्र स्तर पर बहुत बड़ा बदलाव आना मुश्किल है।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
पर्यावरण विशेषज्ञों का मानना है कि पुरानी गाड़ियों को हटाना एक जरूरी लेकिन अधूरा कदम है।
आईआईटी कानपुर और सीएसई जैसी संस्थाओं की रिपोर्ट के अनुसार:
- 10 साल पुरानी डीज़ल गाड़ी, नई गाड़ियों की तुलना में 5 से 7 गुना ज्यादा प्रदूषण फैलाती है।
- लेकिन, केवल गाड़ियों पर ध्यान देने से बाकी बड़े प्रदूषण स्रोत अनदेखे रह जाते हैं।
लोगों की क्या हैं परेशानियां?
सरकार के फैसले से आम लोगों के सामने कई चुनौतियाँ आ खड़ी हुई हैं:
- पुरानी गाड़ियों स्क्रैप में बेचने की मजबूरी
- नई गाड़ी खरीदने में भारी खर्चा
- भावनात्मक लगाव — कई लोगों की यादें जुड़ी होती हैं गाड़ियों से
- दूसरे राज्य जाकर गाड़ी रजिस्टर करवाने का झंझट
बहुत से लोग दिल्ली से बाहर जाकर अपनी पुरानी गाड़ियों फिर से रजिस्टर करा रहे हैं, जो कहीं न कहीं नीति के मकसद को कमजोर कर रहा है।
क्या विकल्प हो सकते हैं?
- स्क्रैप पॉलिसी को मजबूत बनाना:
जिससे पुरानी गाड़ी देने पर अच्छा इंसेंटिव मिले और लोग खुशी से गाड़ी छोड़ें। - ई-वाहनों को सस्ता और सुलभ बनाना:
इलेक्ट्रिक गाड़ियों की कीमत, चार्जिंग स्टेशन और बैटरी की सुविधा सुधारी जाए। - पब्लिक ट्रांसपोर्ट बेहतर बनाना:
अगर मेट्रो, बस और ई-रिक्शा की सेवाएं तेज़, साफ और सस्ती हों, तो लोग खुद गाड़ी चलाना छोड़ेंगे। - प्रदूषण फैलाने वाले अन्य स्रोतों पर नियंत्रण:
जैसे पराली जलाना, निर्माण कार्य और औद्योगिक धुआं।
क्या कहती है सुप्रीम कोर्ट और NGT?
NGT का साफ निर्देश है —
“दिल्ली की हवा में सुधार तब तक नहीं आएगा, जब तक पुराने वाहनों पर रोक नहीं लगाई जाती।”
सुप्रीम कोर्ट ने भी ग्रीन ट्रिब्यूनल के आदेश को समर्थन देते हुए कहा है कि
“यह जनस्वास्थ्य का मुद्दा है, किसी की निजी सुविधा से ऊपर।”
पर्यावरण के लिए जरूरी, लेकिन इंसानियत भी जरूरी:
दिल्ली के प्रदूषण को रोकने के लिए कठोर कदम उठाना ज़रूरी है। लेकिन इन फैसलों को लागू करने से पहले जनता की स्थिति, विकल्प की उपलब्धता और आर्थिक असर का आकलन करना भी उतना ही ज़रूरी है।
सरकार को चाहिए कि वो पुराने वाहन मालिकों को:
- विकल्प दे
- नई गाड़ी खरीदने में सहायता करे
- स्क्रैपिंग का आसान और फायदेमंद तरीका अपनाए
तभी ये नीति सफल और जनहितकारी बन पाएगी।
निष्कर्ष:
सफाई की राह आसान नहीं, लेकिन यह तय है कि बिना दीर्घकालीन सोच के कोई भी कदम अधूरा रहेगा।
- पुरानी गाड़ियों पर बैन एक जरूरी कदम है—पर अकेला यह पर्याप्त नहीं।
- यदि नीति को फिटनेस-आधारित, व्यापक, तथा आर्थिक मददों से जोड़ा जाए, तो यह सच में दिल्ली को साँस लेने लायक शहर बना सकता है।
- टेक्नोलॉजी, कानून, जननीति और लोगों की सुविधा—इन सबका समन्वय जब होगा, तभी दिल्ली की हवा स्वच्छ और स्वास्थ्यप्रद बन पाएगी।