उत्तराखंड के जंगलों में लगी आग से अब तक 1300 हेक्टेयर से अधिक जंगल जल कर राख हो चुका है। इसे रोकने के लिए कई प्रकार के प्रयास किये जा रहे हैं। वैज्ञानिक ऐसे आग को ‘जलवायु परिवर्तन’ और ‘बढ़ती गर्मी’ को जिम्मेदार बता रहे हैं।
जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ एनवायरमेंटल साइंस (School of Environmental Science) के वैज्ञानिकों के अध्ययन के मुताबिक बढ़ती गर्मी के चलते पिछले एक दशक से उत्तराखंड के जंगलों में लगने वाली आग के मामले 47 गुना बढ़ रहा हैं।
वैसे, जलवायु परिवर्तन के चलते कई जंगलों में आग लगने वाली की घटनाएं पूरी दुनिया में बढ़ती जा रही हैं। आने वाले दिनों में गर्मी बढ़ने पर ऐसी घटनाओं में भी काफी इजाफा हो सकता है।
जंगल की आगों से स्वास्थ्य भी हो रहा है प्रभावित
एक तरफ जहां जलवायु में आ रहे बदलावों के कारण बारिश के पैटर्न में भी लगातार बदलाव आ रहा है। वहीं सूखे की घटनाओं में काफी वृद्धि हो रही है। साथ ही वैश्विक तापमान भी लगातार बढ़ रहा है। जिसके परिणामस्वरूप पेड़, पौधे और वनस्पतियां में बहुत तेजी से आग पकड़ रही है। जिसका असर ने केवल जैव विविधता पर पड़ रहा है साथ ही मानव के स्वास्थ्य पर भी इसका असर काफी देखा जा रहा है। एक तरफ जहां जल कर मरने वालों की संख्या में भी इजाफा हो रहा है वहीं इससे निकलने वाला धुआं शरीर के साथ-साथ दिमाग पर भी काफी असर डाल रहा है।
यह शोध न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में छपा हुआ है। इस शोध में पिछले 20 सालो के दौरान इस विषय पर छपे इस रिपोर्ट्स का विश्लेषण किया गया है। जिसके अनुसार इससे फैलने वाले धुंए के चलते आंखों में जलन, कॉर्निया को नुकसान, सांस लेने की बीमारी के साथ-साथ मनोवैज्ञानिक प्रभाव जैसे अवसाद और अनिद्रा हो रही हैं। साथ ही बच्चों और बुजुर्गों के हेल्थ इसका गंभीर असर पड़ रहा है।
एक ओर जहां जलवायु परिवर्तन, जंगल की आग और बढ़ा रहा है, वहीं दूसरी ओर इसके चलते ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में भी काफी बड़ी मात्रा वृद्धि हो रही है। रिपोर्ट के अनुसार ‘1997 से 2016’ के बीच जंगल की आग से जितना उत्सर्जन हुआ है वो जीवाश्म ईंधन से होने वाले उत्सर्जन के करीब 22% के बराबर है। वहीं आग से जिस तरह ‘उष्णकटिबंधीय वनों’ को नुकसान पहुंच रहा है उसका असर पृथ्वी की कार्बन डाइऑक्साइड(CO2) को अवशोषित करने की क्षमता पर भी पड़ रहा है। जिस वजह से जलवायु को ठंडा रखने की दक्षता में काफी असर हो पड़ रहा है।