Gaslighting गैसलाइटिंग एक ऐसा तरीका है जिसमे गैसलाइटर , इंसान के मन में ऐसे भाव डालने की कोशिश करता है, जिससे गैस लाइटिंग का शिकार हो रहा व्यक्ति यह सोचने पर मजबूर हो जाए – जैसे उसमें सूझ बूझ, समझदारी, होशियारी आदि गुणों की कमी हो। और ये सब मनोविज्ञान यानी साइकोलॉजी की मदद से किया जाता है।
गैस लाइटिंग का असर इंसान के दिमाग पर कुछ इस तरह से पड़ता है कि – वह खुद पर काफी ज़्यादा संदेह करने लगता है। यह अक्सर इस तरह से किया जाता है कि पीड़ित व्यक्ति अपनी सोच, भावनाओं और किसी इंसिडेंट पर भी डाउट करने लगता है! गैसलाइटिंग आमतौर पर अपनी ताकत दिखाने के साथ ही कंट्रोल करने के लिए किया जाता है। खासकर व्यक्तिगत संबंधों में।
गैसलाइटर कौन होते हैं?
गैसलाइटर वे लोग होते हैं जो जानकर या अनजाने में लोगों को दुविधा में डालते हैं और उनको कंट्रोल करने के लिए साइकोलॉजिकल ट्रिक्स का इस्तेमाल करते हैं। ऐसे लोग पीड़ित के आत्म-सम्मान और आत्म-विश्वास को धीरे-धीरे खोखला कर देते हैं, जिससे पीड़ित व्यक्ति पूरी तरह से उन पर निर्भर हो जाता है। गैसलाइटर किसी भी रिश्ते में हो सकते हैं, जैसे कि साथी, परिवार के सदस्य, मित्र, सहकर्मी आदि।
गैसलाइटिंग के तरीकों का इस्तेमाल कैसे होता है?
गैसलाइटर अलग-अलग तरीकों का इस्तेमाल करते हैं। ताकि उस व्यक्ति को मानसिक और भावनात्मक पहलुओं से कमजोर किया जा सके।
ताकि वे पीड़ित को मानसिक और भावनात्मक रूप से नियंत्रित कर सकें। इनमें से कुछ सामान्य तरीकों में शामिल हैं।
झूठ बोलना: कहावत है ना एक ही झूठ को इतना फैलाओ की वो सच लगने लगे। गैस लाइटर इस बात को पूरी तरह से फॉलो करते हैं। वो लगातार झूठ बोलते हैं। इतनी बार दोहराते हैं कि, गैस लाइटिंग का शिकार हो रहा व्यक्ति उसी बात को सच मानने पर मजबूर हो जाता है।
बातों को ना मानना: गैस लाइटिंग का शिकार हो रहे व्यक्ति की बात को बिल्कुल न सुनना, सीधे
उन पर ही आरोप लगा देना। गैसलाइटर, पीड़ित के साथ हुए किसी इंसीडेंस या फिर उसके एक्सपीरियंस को पूरी तरह से गलत साबित करने में जुट जाता है, अंततः पीड़ित अपने अनुभवों पर ही संदेह करने लगता है।
कंफ्यूज करना: जब किसी तरह अपने इंटेंशंस पूरे होते न दिखें ऐसे में, गैसलाइटर अक्सर टॉपिक को बदल देते हैं। या फिर सवालों के जवाब गोल-मोल करके देना। जिससे कोई बात साफ़ न हो। और ये सब किया जाता है ताकि कंफ्यूजन बनी रहे।
अपनी गलतियों का ठीकरा सामने वाले पर फोड़ना: गैसलाइटर अपनी गलती कभी नहीं मानता है। सभी गलतियों का जिम्मेदार वो उस पीड़ित व्यक्ति को ही मानता है, उसे ही दोषी ठहराता है, जिससे पीड़ित को खुद पर काफी ज्यादा संदेह होने लगता है।
इमोशनल एक्सप्लोइटेशन : गैसलाइटर पीड़ित के आत्म-सम्मान को धीरे-धीरे कमजोर करता है, एक समय पर वह मानसिक तौर पर बिल्कुल बोझिल हो जाते हैं। उन्हें बेकार, नाकारा या बेवकूफ महसूस कराया जाता है। धीरे-धीरे उनकी खुद की नजरों में उनकी कोई अहमियत नहीं रहती।
गैसलाइटिंग से निपटने के तरीके
अगर आपको लगता है कि आप गैसलाइटिंग का शिकार हो रहे हैं, तो इससे निपटने के कुछ तरीके हैं:
खुद पर विश्वास करें: कितनी भी कठिन परिस्थिति में खुद पर से विश्वास ना उठने दें। कोई और आपको कुछ भी समझे लेकिन आप खुद पर भरोसा हर परिस्थिति में रखें। आपकी अहमियत किसी और के कुछ बोलने से कम नहीं हो जाती।अपने अनुभवों और भावनाओं पर विश्वास करें।
सीमाएं निर्धारित करें: गैसलाइटर के साथ बातचीत की सीमाएं तय करें। किसी को भी इतनी ज्यादा अहमियत ना दें कि वह आपकी तय सीमा को लांघे।
जरूरत पड़ने पर सपोर्ट लेने से झिझके नहीं: अपने दोस्तों, परिवार या जरूरत पड़ने पर डॉक्टर की भी मदद का सहारा लें। संकोच ना करें। ऐसा करने से आपका खोया हुआ कॉन्फिडेंस वापस आएगा। आपके आत्म-सम्मान को बढ़ाने में मदद करेगा। आपके अपनों से मदद लेने में बिल्कुल भी ना शर्माए क्योंकि वह आपका अच्छा ही चाहेंगे।
प्रोफेशनल मदद लें: फैसला लेना कठिन हो सकता है। लेकिन आप हर कठिनाई से लड़ने के लिए काफी मजबूत है। कोई भी परिस्थिति आपसे बड़ी नहीं है। खुद पर विश्वास रखें। और मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ या थेरेपिस्ट की मदद लें, जो गैसलाइटिंग से निपटने के लिए आपकी मदद कर सकते हैं।
गैस लाइटिंग काफी बढ़ जाए तब यह काफी खतरनाक हो सकता है। इसमें इंसान हर छोटी-छोटी बातों पर, खुद पर ही संदेह करने पर मजबूर हो जाता है। ऐसी समस्याओं से निपटने के सबसे पहले तो, इस बात को मानें की यह सब आपके साथ हो रहा है। फिर इस तरफ काम करने से घबराएं नहीं। ऐसे समय में उन लोगों की मदद लेने से बिल्कुल ना हिचकिचाएं जो सच में आपका अच्छा सोचते हैं। अगर स्थिति ज्यादा गंभीर है तो मेंटल हेल्थ स्पेशलिस्ट से सलाह लेने से भी न कतराएं!
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