Junior NTR Devara Review: इस बात में कोई दो राय नहीं है कि जूनियर एनटीआर मैस हीरो है और उनमें हीरो शब्द को वजन देने वाला हर एक पदार्थ है एक्शन सींस बहुत ज्यादा ग्राफिक है इसलिए सिंथेटिक लगते हैं इनमें वह अपील मिसिंग लगती है कि स्क्रीन पर देखकर आप वाहो बोल बैठे।
Devara Review: देवरा 2 घंटे 45 मिनट से ज्यादा लंबी फिल्म है लेकिन अगर इसमें से जूनियर एनटीआर की हीरो वाले शॉट हटा दिए जाए तो या फिल्म शायद आई बचेगी औसतन हर 3 मिनट में उनकी एक हीरो वाली वॉक हीरो वाली पोज़ और स्लो मोशन शॉट है इससे पहले की आप इस बात को नेगेटिविटी समझ 1 मिनट ब्रेक लेकर डिस्कस करते हैं कि ऑन स्क्रीन हीरो का हीरोइज्म क्या होता है।
इस बात में कोई दो राय नहीं है कि जूनियर एनटीआर मांस हीरो है और उनमें हीरो शब्द को वजन देने वाला हर एक पदार्थ है लेकिन यह समझना जरूरी है कि हीरो का हीरोइज्म उसके एक्ट और एक्शन में दिखना चाहिए एक तगड़ा हीरो वह करते देखना चाहिए जो सिचुएशन के हिसाब से सबसे ओबवियस लगे।
जो संभव तो हो. मगर कोई और वैसा करने की हिम्मत या इच्छा शक्ति नहीं रखना हो जैसे RRR का वो सीन भी है जिसमें (जूनियर एनटीआर) जानवरों के साथ अंग्रेजों की छावनी पर हमला करते हैं उस सीन में सब कुछ ऐसा है जो टेक्निकल पॉसिबल है साथही ना की हीरो कुछ ऐसा करते देखना चाहिए जो पॉसिबल ही नहीं है और देवरा में ऐसे मोमेंट्स काफी भरे पड़े हैं।
देवरा में क्या है मुद्दा।
फिल्म में समंदर किनारे पहाड़ पर बसे गांव की कहानी है जिनके पुरखे बहुत बड़े वीर थे उन वीरों ने गलत नियत लेकर समंदर से आ रहे हर खतरे को झुका दिया जिनमें अंग्रेज भी शामिल थे मगर देश आजाद होने के बाद युद्ध लड़ने वाले यह वीर अब किसी काम के नहीं रहे तो जिंदगी चलाने के लिए ऐसे काम करने लगे जिनमें बहादुर चाहिए थी जैसे पैसों के बदले किसी के लिए समंदर में जहाज से माल चोरी करना।
चारों गांव के सभी लोग अलग-अलग स्किल रखते हैं गांव के सभी लोग किस काम में स्किल्ड थे फिल्म नहीं बताती एक गांव का लीडर देवरा (जूनियर एनटीआर) होता है और एक का बड़ा सैफ अली खान है दोनों एक टक्कर के बहादुर है बाकी दो गांव के भी लीडर है लेकिन उन पर ध्यान नहीं देना है ऐसा फिल्म आपसे चाहती है देवरा भैरा एंड कंपनी की राजी खुशी शिप्स से चोरी करके लाइफ कट रहे हैं।
मेन ट्वीट में खुद उलझ गई फिल्म।
फिल्म का सबसे बड़ा ट्वीट देवरा के बेटे द्वारा के कैरेक्टर अर्क में होना था उसका डरपोक लड़के से योद्धा हो जाना स्क्रीन पर उभर कर आना चाहिए था लेकिन फिल्म की राइटिंग में दोनों पॉइंट्स के बीच पुरी शून्य हो गई है कुछ बेहतरीन कॉमेडी फिल्में कर चुके जूनियर एनटीआर की शक्तियों का यहां गलत इस्तेमाल हो गया है वरना वह डरपोक वाले रोल में तगड़ा माहौल जमा सकते थे।
देवरा में एक्शन सेट पीस जमकर है लेकिन यह उसे तरह का फूल नहीं पैदा कर पाते जैसा कर सकते थे यह फिल्म अपना पूरा वजन वीएफएक्स की लाठी के सहारे टिक कर लड़खड़ा जाने का भी शिकार हुई है एक्शन सींस बहुत ज्यादा ग्राफिक्स है इसलिए सिग्नेटिक लगते हैं इनमें वह अपील मिसिंग लगती है कि स्क्रीन पर देखकर आप वाहो बोल सके।
अगर आप जूनियर एनटीआर के फैन है तो आपको एक बार जरुर देखना चाहिये एनटीआर का रोल कुछ हदतक अच्छा है.
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