रानी लक्ष्मीबाई की मूर्ति का विरोध शाही ईदगाह प्रबंध समिति पर कोर्ट की फटकार: सांप्रदायिक राजनीति का आरोप
दिल्ली हाई कोर्ट ने हाल ही में शाही ईदगाह प्रबंध समिति की याचिका पर कड़ी टिप्पणी की, जिसमें समिति ने शाही ईदगाह पार्क के अंदर रानी लक्ष्मीबाई की प्रतिमा स्थापित करने से रोक लगाने की मांग की थी। कोर्ट ने याचिका को खारिज करते हुए कहा कि यह मामला सांप्रदायिक राजनीति से प्रेरित है और समिति कोर्ट का गलत इस्तेमाल कर रही है।
कोर्ट का कहना: इतिहास को सांप्रदायिक आधार पर नहीं बांटना चाहिए
कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा कि इतिहास को सांप्रदायिक आधार पर बांटना उचित नहीं है। रानी लक्ष्मीबाई एक राष्ट्रीय नायक हैं, जो सभी धर्मों और समुदायों के लिए सम्माननीय हैं। कोर्ट ने कहा कि ‘झांसी की रानी’ जैसी विभूतियों को धार्मिक सीमाओं से परे देखा जाना चाहिए।
निंदनीय दलीलें और सांप्रदायिक राजनीति
कोर्ट ने शाही ईदगाह प्रबंध समिति द्वारा इस्तेमाल किए गए शब्दों और दलीलों को निंदनीय बताया। कोर्ट ने कहा कि याचिका में प्रस्तुत तर्क विभाजनकारी हैं और सांप्रदायिक राजनीति का हिस्सा हैं। कोर्ट ने समिति पर आरोप लगाया कि वह इस मामले के जरिए सांप्रदायिक राजनीति कर रही है और कोर्ट को इस राजनीति में घसीट रही है।
याचिका वापस लेने की प्रक्रिया
समिति के वकील ने जैसे ही याचिका वापस लेने की बात कही, कोर्ट ने निर्देश दिया कि पहले उन पैराग्राफों को याचिका से हटाया जाए जिनमें निंदनीय दलीलें दी गई थीं। साथ ही, कोर्ट ने समिति से माफी मांगने के निर्देश भी दिए। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि मामले की अगली सुनवाई 27 सितंबर को होगी, जिसमें याचिका वापस लेने पर आदेश पारित किया जाएगा।
वक्फ संपत्ति पर विवाद
शाही ईदगाह प्रबंध समिति की याचिका में दावा किया गया कि ईदगाह पार्क, जो दिल्ली के सदर बाजार क्षेत्र में स्थित है, एक वक्फ संपत्ति है। समिति ने मांग की कि दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA) और अन्य नागरिक अधिकारियों को शाही ईदगाह पार्क में कोई मूर्ति या संरचना स्थापित करने से रोका जाए। हालांकि, कोर्ट ने इस तर्क को खारिज कर दिया, यह कहते हुए कि इससे धार्मिक अधिकारों या प्रार्थना करने के अधिकारों पर कोई असर नहीं पड़ता।
दिल्ली की शाही ईदगाह पार्क में रानी लक्ष्मीबाई की मूर्ति स्थापना को लेकर चल रहे विवाद में सितंबर 2024 में कोर्ट ने अहम टिप्पणी की। दिल्ली हाई कोर्ट ने शाही ईदगाह प्रबंध समिति की याचिका को खारिज करते हुए उसे विभाजनकारी और सांप्रदायिक राजनीति से प्रेरित बताया। कोर्ट ने कहा कि इतिहास को सांप्रदायिक आधार पर बांटने का प्रयास नहीं होना चाहिए और रानी लक्ष्मीबाई एक राष्ट्रीय नायिका हैं, जो सभी धार्मिक सीमाओं से परे हैं।
समिति ने दलील दी थी कि शाही ईदगाह पार्क वक्फ की संपत्ति है और वहां किसी भी मूर्ति या संरचना की स्थापना से धार्मिक कार्यों में बाधा उत्पन्न हो सकती है। लेकिन कोर्ट ने इसे अस्वीकार कर दिया और कहा कि मूर्ति स्थापना से किसी के धार्मिक अधिकारों या प्रार्थना करने के अधिकारों का उल्लंघन नहीं हो रहा है।
इसके अलावा, कोर्ट ने समिति द्वारा दाखिल याचिका की भाषा पर कड़ी आपत्ति जताई, जिसमें न्यायालय के निर्णय पर अनुचित टिप्पणियां की गई थीं। कोर्ट ने इसे “निंदनीय” और न्यायाधीशों के प्रति अनुचित बताया। कोर्ट ने समिति को निर्देश दिया कि वे अपनी याचिका से इन आपत्तिजनक टिप्पणियों को हटाकर माफी मांगें। मामले की अगली सुनवाई 27 सितंबर को होने की उम्मीद है
निष्कर्ष
इस पूरे मामले में कोर्ट ने स्पष्ट रूप से शाही ईदगाह प्रबंध समिति की याचिका को खारिज करते हुए इसे सांप्रदायिक राजनीति का हिस्सा बताया। कोर्ट ने समिति को फटकार लगाते हुए माफी मांगने के निर्देश दिए और रानी लक्ष्मीबाई को एक राष्ट्रीय नायक के रूप में सभी धर्मों से ऊपर बताया।