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Mansoon Update: साउथ रीजन में ही क्यों सबसे पहले आता है मॉनसून, नॉर्थ तक आने में इतना वक्त क्यों लगता है?

जहां पूरा उत्तर भारत मानसून का इंतजार कर रहा है वहीं साउथ रीजन केरल में तय समय से पहले ही मानसून पहुच गया है, आखिर नॉर्थ रीजन तक मानसून आने में इतना समय क्यों लगता है?

Mansoon Update: पूरा उत्तर भारत इन दिनों गर्मी से काफी परेशान है और मानसून का इंतजार किया जा रहा है. वहीं केरल में मानसून ने तय समय से पहले ही दस्तक देकर राहत दी है. ऐसे में सवाल ये बनता है कि आखिर उत्तर भारत आने में मानसून को इतना वक्त क्यों लग जाता है?

उत्तर भारत में कब तक पहुंचेगा मानसून?

केरल में मानसून ने पहले ही आ गया था. अनुमान लगाया ये जा रहा है कि उत्तर भारत में 26 June तक मानसून पहुंच सकता हैं. हालांकि मौसम विभाग के मुताबिक, मानसून की चाल थोड़ी धीमी पड़ी हुई है, ऐसे में ये समय से लेट ही उत्तर भारत तक पहुंचेगा. पिछले कुछ सालों पर नजर डाला जाये तो उत्तर भारत में इसने काफी देर से ही दस्तक दी हई है. ऐसे में सवाल ये बनता है कि आखिर उत्तर भारत में मानसून के इतनी देर से पहुंचने की वजह क्या है.

मानसून क्या होता है?

आप को बता दें कि मॉनसून महासागरों की ओर से चलने वाली तेज हवाओं की दिशा में बदलाव को कहते है. इससे सिर्फ बारिश ही नहीं होती हैं, बल्कि अलग-अलग इलाकों में ये सूखा मौसम भी बनाता है. हिंद महासागर और अरब सागर की ओर से चलने वाली ये तेज हवाएं भारत, बांग्लादेश तथा पाकिस्तान में भारी बारिश के लिए जिम्मेदार बनती हैं.

आमतौर पर भारत में मानसून 1 जून से 15 सितंबर तक 45 दिनों तक सक्रिय रहता है. समर मॉनसून तेज हवाओं के साथ होने वाली बारिश भी शामिल होती है, जो अप्रैल से सितंबर के बीच होती है. वहीं ठंड खत्म होने पर दक्षिण-पश्चिम हिंद महासागर से सूखी नम हवा जैसी भारत, श्रीलंका, बांग्लादेश और म्यांमार की ओर बहने शुरू हो जाती है. इससे मौसम में नमी बनती है और इसके बाद हल्की से लेकर तेज बारिश तक होने की संभावना बनी रहती है.

क्यों मानसून को उत्तर भारत आने में हो जाती है देरी?

मानसून आने से पहले इसके आने की दस्तक भारत में कुछ खास जगहों पर करीबन 15 दिन पहले से ही नजर आना शुरू हो जाती है. जब दक्षिण-पश्चिम में मॉनसून आता है तो भारतीय क्षेत्र में हवा के संचलन, संवहन और तापमान के पैटर्न में काफी ज्यादा बदलाव दिखाई देने लगता है. मॉनसून में देरी का सबसे बड़ी वजह भारतीय उपमहाद्वीप पर मध्य-अक्षांश पछुआ हवाओं के रूप में पहचानी जाने वाली हवाओं के बड़े समूह की लगातार उपस्थिति का होना भी है, जिसका एक छोटा सा भाग पश्चिमी विक्षोभ में भी होता है.

अमूमन पश्चिमी विक्षोभ पश्चिमी हिमालयी क्षेत्र और उत्‍तर-पश्चिम भारत के मैदानी क्षेत्रों को प्रभावित होता है. पिछले साल मौसम की स्थिति देखें तो फरवरी 2023 में एक नया रिकॉर्ड गर्मी के बाद मई की शुरुआत तक मौसम ठंडा रहा था. वहीं बेमौसमी बारिश के कारण ठंड की अवधि बढ़ने से भी दक्षिण पश्चिमी मॉनसून में काफी ज्यादा देरी को दर्ज की जाती है.

कमजोर अलनीनो का भी असर होता है

इसके अलावा जब पश्चिम की ओर से हवाएं ज्याद समय तक भारतीय क्षेत्रों में रहती हैं तो दक्षिणी-पश्चिम मानसून की हवाओं को इन्हें सामना करना पड़ता है. जब इस प्रक्रिया में समय लगता है तब भी मानसून में देरी देखने को मिलती है. इसके इधर यदि भूमध्य रेखिय महासागर में अलनीनो की स्थिति कमजोर पड़ने लगती है तो भी दक्षिण पश्चिम मानसून में देरी देखने को मिलती है. जैसे की इस साल भी अलनीनो की स्थिति काफी कमजोर पड़ चुकी है.

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Shahnawaz Sharif

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