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Nirjala Ekadashi : निर्जला एकादशी व्रत कथा इस दिन क्या करें क्या ना करें।

Nirjala Ekadashi : निर्जला एकादशी के दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की सच्चे मन से पूजा करें साथ ही जो व्रत रखने में सामर्थ्य वान हैं वो इस व्रत को ज़रूर रखें।

Nirjala Ekadashi : इस दिन सभी को एकादशी के व्रत की कथा सुनाई चाहिए। ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष पर पड़ने वाली एकादशी को निर्जला एकादशी या भीमसेनी एकादशी भी कहते हैं। वैसे तो हर महीने 2 एकादशी आती है जिनका अपना अलग-अलग महत्व है, लेकिन मान्यता है कि निर्जला एकादशी को रखने से 24 एकादशियों का फल मिल जाता है। इस व्रत में काफी चीजों का ध्यान रखना होता है साथ ही कई चीजों की मनाही भी होती है। कुल मिलाकर इस व्रत को रखना काफी कठिन माना जाता है। जैसे को इस एकादशी का नाम ही निर्जला एकादशी है। इसलिए इस दिन व्रत रखने वाले व्यक्ति का जल पीना वर्जित होता है। हालांकि अपने अपने सामर्थ्य के अनुसार इस व्रत को किया जा सकता है।
आईए जानते हैं निर्जला एकादशी व्रत की कथा साथ ही जानेंगे क्यूं इस एकादशी को भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है।

युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण से कहा – जनार्दन! ज्येष्ठ मास के शुक्लपक्ष में पढ़ने वाली ने जला एकादशी के बारे में बताइए। इस पर कृष्ण जी ने कहा कि इसके बारे में सत्यवतीनंदन बताएंगे जो सभी वेदों की ज्ञात हैं।
फिर वेदव्यास जी बताने लगे की – कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की एकादशियों पर भोजन नहीं किया जाता। फिर अगले दिन स्वच्छचित् से भगवान वंदना करें। साथ ही ब्राह्मणों को भोजन करवाएं उसके बाद ही खुद ग्रहण करें।
इतने में भीमसेन कहते हैं कि – मैं बिना अन्य के बिल्कुल नहीं रह सकता। मुझे पूजा वंदना दान पुण्य हो सकता है लेकिन मेरे पेट में वक्र अग्नि है जिसकी वजह से मैं अन्न के बिना नहीं रह सकता। पूरे साल भर में केवल एक ही व्रत रख सकता हूं। कृपया कर ऐसे व्रत के बारे में बताएं जो साल में केवल एक बार रखने पर ही स्वर्ग में जगह मिले।
व्यास जी कहते हैं – पांडु पुत्र भीम सेन जयेष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की पड़ने वाली एकादशी का व्रत करो। इस एक एकादशी के व्रत से ही स्वर्ग में स्थान मिलता है। लेकिन इस दिन अन्न के साथ जल ग्रहण करना भी वर्जित होता है। इस दिन केवल दातुन और आचमन के लिए ही जल मुख में जाता है। एकादशी के दिन सूर्योदय से लेकर अगले दिन द्वादशी सूर्य उदय तक बिना जल ग्रहण किए इस को रखना होता है। फिर एकादशी पर ब्राह्मणों को भोजन करवाएं। इस तरह से व्रत रखने पर साल भर की एकादशी का फल मिल जाता है। अंत में बैकुंठ धाम मिलता है। जो इस एकादशी की महिमा को भक्ति भाव से सुनता या सुनाता है। उसे व्रत रखने का फल प्राप्त होता है ।

 ध्यान देने वाली बातें।

इस एकादशी को भीमसेन ने किया, भीमसेन अपनी भूख को शांत नही कर पाते थे फिर भी उन्होंने निर्जला एकादशी का व्रत किया। इसलिए इस एकादशी को भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है।
इस दिन सभी को पीले वस्त्र पहनना चाहिए। साथ ही भगवान की सच्चे मन से अर्चन वंदना करनी चाहिए। वैसे तो बुराई कभी भी न करें लेकिन इस दिन खासकर किसी के भी बारे में बुरा न कहें। आज के दिन बाल तेल नाखूनों को काटना मन होता है। साथ ही व्रत में बिल्कुल ना सोए। अपने मन को शांत रखें। तुलसी के पौधे में जल दें। साथ ही परिक्रमा भी जरूर लगाए।
भगवान के मंत्रों का जप करें। जिन लोगो का व्रत नहीं भी है वह कम से कम सात्विक भोजन ले। बुराई नहीं करनी चाहिए। भ्रमचर्य का पालन करें।

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