भारत — एक ऐसा देश, जहां रंग, संस्कृति, और भाषाओं का मेल हर कोने में नजर आता है। यहाँ की मिट्टी में विविधता की खुशबू है, और यही विविधता हमारी ताकत है। लेकिन आज एक सवाल दिल को चुभता है — ये कैसा देश है, जहाँ अपनी ही भाषा बोलने में लोग शर्म महसूस करते हैं? हिंदी, जो संघ की राजभाषा है, जो गाँव की गलियों से लेकर संसद के गलियारों तक गूंजती है, आज उसी हिंदी को कुछ लोग हीन समझने लगे हैं। क्या वाकई हिंदी अब शर्म की परिभाषा बन गई है?
हिंदी पर तिरस्कार का साया
देश के कई हिस्सों में हिंदी बोलना आज अपराध-सा बन गया है। दक्षिण भारत के कई राज्यों जैसे— तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश — में हिंदी को खुलकर नकारा जा रहा है। तमिलनाडु में तो “हिंदी विरोधी” आंदोलन दशकों पुराना है। वहाँ हिंदी को “थोपी गई भाषा” कहकर खारिज किया जाता है। लोग कहते हैं, “हमें तमिल चाहिए, हिंदी नहीं।” यह सोच अब धीरे-धीरे अन्य दक्षिणी राज्यों में भी फैल रही है।
महाराष्ट्र में भी स्थिति कुछ अलग नहीं। मुंबई, जो कभी हर भारतीय का सपना थी, वहाँ अब “मराठी में बात करो” की मांग आम हो चली है। दुकानों, ऑफिसों, ट्रेनों में हिंदी बोलने वालों को अजनबी नजरों से देखा जाता है। लोकल प्रशासन ने मराठी को बोर्डों और संवाद में अनिवार्य कर दिया है। सवाल उठता है — क्या अब भारत में रहने के लिए हर राज्य की भाषा सीखना अनिवार्य हो जाएगा? क्या एक भारतीय सिर्फ इसलिए पराया हो जाएगा क्योंकि उसने हिंदी बोली?
हिंदी से दूरी, ग्लैमर की चकाचौंध
हिंदी सिर्फ एक भाषा नहीं, यह हमारी भावनाओं का, हमारी संस्कृति का, हमारी पहचान का हिस्सा है। लेकिन अफसोस, आज इसे ग्लैमर की दुनिया में पिछड़ा माना जा रहा है। बॉलीवुड, जो खुद को “हिंदी सिनेमा” कहता है, वहाँ सितारे अंग्रेजी में इंटरव्यू देते हैं, इवेंट्स अंग्रेजी में होते हैं, और फिल्मों के नाम तक अंग्रेजी में रखे जा रहे हैं।
आज की युवा पीढ़ी में यह धारणा घर कर गई है कि अंग्रेजी बोलना “क्लास” है, और हिंदी बोलना “लो स्टेटस”। स्कूलों में बच्चे हिंदी बोलें तो उन्हें सजा मिलती है, ऑफिसों में हिंदी में ईमेल लिखने वालों को “अनप्रोफेशनल” ठहराया जाता है। सवाल यह है — हिंदी से यह चिढ़ क्यों? क्या अंग्रेजी जान लेने से हमारी मातृभाषा बेकार हो गई? क्या अपनी भाषा से प्यार करना अब पिछड़ेपन की निशानी बन गया है?
हिंदी का गर्व, भारत की धड़कन
लेकिन सच यह भी है कि भारत के कई हिस्सों में हिंदी आज भी गर्व का प्रतीक है। उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, झारखंड — यहाँ के लोग हिंदी को न सिर्फ बोलते हैं, बल्कि इसे जीते हैं। यहाँ हिंदी कविताओं में ढलती है, गीतों में बसती है, और रोजमर्रा की जिंदगी में सांस लेती है।
हिंदी सिर्फ “उत्तर भारत की भाषा” नहीं है। यह संघ की राजभाषा है। यह वह धागा है, जो हमें एक-दूसरे से जोड़ता है। लेकिन जब अपने ही देश में इसे “थोपी गई” कहकर नकारा जाए, तो तो दर्द होता है।
भाषा जोड़ती है, तोड़ती नहीं
भाषा का काम है दिलों को जोड़ना, न कि दीवारें खड़ी करना। लेकिन जब भाषा के नाम पर नफरत फैलने लगे, तो सोचना होगा कि हम किस दिशा में जा रहे हैं। अगर आज हम हिंदी से कट गए, तो कल शायद एक-दूसरे से भी कट जाएंगे। हिंदी को मिटने देना सिर्फ एक भाषा को खोना नहीं, बल्कि हमारी साझी पहचान को खोना है।
हिंदी को शर्म मत बनने दो
हमें यह समझना होगा कि अपनी मातृभाषा को सम्मान देना कमजोरी नहीं, ताकत है। हिंदी को गले लगाना “पिछड़ेपन” नहीं, बल्कि अपनी जड़ों से जुड़े रहने का सबूत है। हमें चाहिए कि हम हिंदी को न सिर्फ बोलें, बल्कि इसे गर्व से अपनाएं। स्कूलों में हिंदी को सम्मान दें, ऑफिसों में हिंदी को जगह दें, और सबसे जरूरी — अपने दिलों में हिंदी को जिंदा रखें।
हिंदी सिर्फ एक भाषा नहीं, हमारी आत्मा है। इसे शर्म मत बनने दो। इसे मिटने मत दो। आइए, हिंदी को वह सम्मान दें, जो इसका हक है। क्योंकि जब तक हिंदी जिंदा है, हमारी पहचान जिंदा है।
“हिंदी हमारी धरोहर है, इसे संजोएं, इसे बचाएं।”
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